Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Hindi

इमाम हुसैन का भारतप्रेम

यह एक सर्वमान्य सत्य है कि इतिहास को दोहराया नहीं जा सकता है और न बदलाया जा सकता है ,क्योंकि इतिहास कि घटनाएँ सदा के लिए अमिट हो जाती है .लेकिन यह भी सत्य है कि विज्ञान कि तरह इतिहास भी एक शोध का विषय होता है .क्योंकि इतिहास के पन्नों में कई ऐसे तथ्य दबे रह जाते हैं ,जिनके बारे में काफी समय के बाद पता चलता है .ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना हजरत इमाम हुसैन के बारे में है वैसे तो सब जानते हैं कि इमाम हुसैन मुहम्मद साहिब के छोटे नवासे ,हहरत अली और फातिमा के पुत्र थे .और किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं ,उनकी शहादत के बारे में हजारों किताबें मिल जाएँगी .काफी समय से मेरे एक प्रिय मुस्लिम मित्र हजरत इमाम के बारे में कुछ लिखने का आग्रह कर रहे थे ,तभी मुझे अपने निजी पुस्तक संग्रह में एक उर्दू पुस्तक "हमारे हैं हुसैन " की याद आगई , जो सन 1960 यानि मुहर्रम 1381 हि० को इमामिया मिशन लखनौउसे प्रकाशित हुई थी .इसकी प्रकाशन संख्या 351 और लेखक "सय्यद इब्न हुसैन नकवी " है .इसी पुस्तक के पेज 11 से 13 तक से कुछ अंश लेकर ,उर्दू से नकवी जी के शब्दों को ज्यों का त्यों दिया जा रहा ,

शहादत इमाम हुसैन मानव इतिहास की बहुत बड़ी त्रासदी

प्रोफेसर अख्तरुल वासे 22 नवंबर, 2012 (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम) मोहर्रम का महीना इस्लामी महीनों में कई मायनों में बहुत अहम है। इतिहास की बहुत सी अहम घटनाएं इसी महीने में हुई हैं। लेकिन दो घटनाएं ऐसी हैं जो इस महीने के विचार से बुनियादी स्तर पर जुड़ी हैं: लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के मदीना हिजरत और रसूलुल्लाह के दूसरे नवासे हज़रत हुसैन रज़ियल्लाहू अन्हू की कर्बला में शहादत। हिजरत की घटना भी दुश्मनों से इस्लाम की रक्षा के लिए सामने आयी और कर्बला की घटना भी इस्लाम और इस्लामी व्यवस्था के कमज़ोर होने को जीवंत करने के लिए सच का साथ देने वालों के द्वारा उठाये गये क़दम के नतीजे में सामने आयी, इस प्रकार इन दोनों घटनाएं तर्क संगत पाई जाती हैं। कर्बला की घटना न केवल इस्लामी बल्कि मानव इतिहास की एक बहुत बड़ी त्रासदी है। यही वजह है कि आज लगभग चौदह सौ साल गुज़रने के बावजूद ये घटना लोगों के मन में इस तरह ताज़ा है जैसे ये बस कल की बात है। मानव इतिहास की बहुत सी ऐसे घटनाएं हैं जो इंसानो के अक़्ल और ज़मीर को झिंझोड़  कर रख दिया। जो उसकी याददाश्त के

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय

माता पिता हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़तिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं। आप अपने माता पिता की द्वितीय सन्तान थे। जन्म तिथि व जन्म स्थान हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म सन् चार ( 4) हिजरी क़मरी में शाबान मास की तीसरी ( 3) तिथि को पवित्र शहर मदीनेमें हुआ था। नाम करण आप के जन्म के बाद हज़रत पैगम्बर(स.) ने आपका नाम हुसैन रखा। तथा आपके माथे पर चुम्बन कर के कहा कि तेरे सम्मुख एक महान् विपत्ति है। अल्लाह तेरी हत्या करने वाले पर लानत करे। उपाधियां हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मुख्य उपाधियां मिस्बाहुल हुदा , सैय्यिदुश शोहदा , अबु अबदुल्लाह व सफ़ीनातुन निजात है। पालन पोषण इतिहासकार मसूदी ने उल्लेख किया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम छः वर्ष की आयु तक हज़रत पैगम्बर(स.) के साथ रहे। तथा इस समय सीमा में   इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सदाचार सिखाने ज्ञान प्रदान करने तथा भोजन कराने   का उत्तरदायित्व स्वंम पैगम्बर(स.) के ऊपर था।   पैगम्बर(स.)   इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अत्यधिक प्रेम करते थे। वह उनका छोटा सा दुखः भी सहन

सच के लिए शहीद हो गए इमाम हुसैन

इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना है मोहर्रम। इसे इस्लामी इतिहास की सबसे दुखद घटना के लिए भी याद किया जाता है। इसी महीने में 61 हिजरी में यजीद नाम के एक आतताई ने इमाम हुसैन अलैयहिस्सलाम और उनके 72 अनुयाइयों का कत्ल कर दिया था। सिर्फ इसलिए क्योंकि इमाम हुसैन अलैयहिस्सलाम ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया था। इनकार इसलिए किया था, क्योंकि उनकी नजर में यजीद के लिए इस्लामी मूल्यों की कोई कीमत नहीं थी, जबकि यजीद चाहता था कि वह खलीफा है, इसकी पुष्टि इमाम हुसैन अलैयहिस्सलाम करें। क्योंकि वह हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हैं और उनका वहां के लोगों पर काफी अच्छा प्रभाव है। यजीद की बात मानने से इनकार करने के साथ ही उन्होंने यह भी फैसला लिया कि अब वह अपने नाना हजरत मोहम्मद साहब की कर्मभूमि मदीना छोड़ देंगे, ताकि वहां का अम्नो-अमान कायम रहे। और निकल पड़े इराक स्थित कुफानगरी के लिए। वहां के लोगों ने उन्हें अपने यहां आने का पैगाम भेजा था। लेकिन कुफानगरी के रास्ते में करबला के पास यजीद की फौज ने उनके काफिले को घेर लिया। उनके पास खाना-पानी तक नहीं पहुंचने दिया। इस काफ

यज़ीद के विरूद्ध हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का क़ियाम व उसके उद्देश्य

सन्60 हिजरी क़मरी में मुआविया के मरने के बाद उसका बेटा यज़ीद शाम के सिहासन पर बैठा और उसने स्वयं को पैग़म्बर का उत्तराधिकारी घोषित किया। सत्ता पाने के बाद उसने इस्लामी मान्याताओं को बदलने और क़ुरआन के आदेशों का विरोध करने के साथ साथ मानवता विरोधी कार्य करने भी शुरू कर दिये। इमाम हुसैन ने जब यज़ीद को इस्लाम विरोधी कार्य करते देखा तो सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध क़ियाम (क़ियाम अर्थात किसी के विरूद्ध संघर्ष करना) किया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को आपने प्रवचनो में इस प्रकार स्पष्ट किया कि---- 1— . जब शासकीय यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीना छोड़ने पर मजबूर हो गये तो उन्होने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को इस प्रकार स्पष्ट किया। “ मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमयी जीवन यापन करने या उपद्रव फैलाने के लिए क़ियाम नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम) की उम्मत (इस्लामी समाज) में सुधार हेतु जा रहा हूँ तथा मेरा निश्चय मनुष्यों को अच्छाईयों की और बुलाना व बुराईयों से रोकना