कुरआने
करीम में अल्लाह
तआला फरमाता है:
जो
तुमको रसूल दे
दें उसे ले
लो और जिस
से मना करे
उससे बाज़ रहो। (सूरए
हशर आयत 7)
जिसने
रसूल की इताअत
की तो उसने
अल्लाह की इताअत
की। (सूरए निसा
आयत 80)
सन
10 हिजरी
में रसूलअल्लाह (स.)
ने इन्तेकाल फरमाया। जब
आपका आखरी वक्त
करीब था तो
आपने फरमाया:
''हज़रत इन्बे
अब्बास रजि. कहते
हैं - जब नबी-ए-करीम (स.)
के दर्द तेज
हुआ तो आपने
फर्माया, मेरे पास कागज़
लाओ ताकि मैं
तुम को ऐसी
तहरीर लिख दूँ
जिस के बाद
तुम गुमराह न
हो, हज़रत उमर
रजि. बोले हुज़ूर
पर दर्द की
ज़्यादती है और हमारे
पास खुदा की
किताब है जो
हमारे लिए काफी
है, इस पर
लोगों में इख्तलाफ़ पैदा
हो गया और
खूब शोर मचा,
आपने (यह देख
कर) फ़र्माया मेरे
पास से चले
जाओ, मेरे पास
झगड़ा मत करो।''
(सहीह बुखारी
(तजरीद), हदीस नं.
90, हिन्दी
एडीशन - ऑक्टोबर 2004, फरीद बुक
डेपो, दिल्ली)
झगड़ा
इस बात पर
था कि रसूल-अल्लाह एक तहरीर
लिखना चाहते थे
जिससे उम्मत कभी
गुमराह न होती,
लेकिन उस वक्त
उनकी बात नहीं
मानी गयी। इस
पर कुछ लोगोने
कहा कि रसूल
की इताअत अल्लाह
की इताअत है,
उनको वसीयत लिखने
का मौका देना
चाहिये था। बहरहाल
अक्सर मुसलमानों के
अकीदे के मुताबिक रसूलअल्लाह (स.)
बगैर वसीयत किए
इस दुनिया से
चल बसे और
तकरीबन सारे लोगों
नें हज़रत अबुबकर
की बैअत कर
ली। हज़रत अबूबकर
ने अपने बाद
हज़रत उमर को
खलीफा बनाया। हज़रत
उमर ने आपने
बाद खलीफा बनाने
के लिए एक
कमिटी बनाई जिसे
शूरा कहते हैं
और इस कमिटी
ने हज़रत उस्मान
को खलीफा चुना
और हज़रत उस्मान
के बाद हज़रत
मुआविया का दौर आया
और मुआविया के
बाद उनके बेटे
यज़ीद की बैअत
अक्सर मुसलमानों ने
कर ली थी।
वह
गिरोह जो रसूलअल्लाह को
कागज़ कलम न
दिए जाने पर
नाराज़ था उसने
हज़रत अबूबकर की
बैअत नहीं की।
इन लोगों के
नाम ''तारीखे याकूबी''
की जिल्द 2 के
सफ्हा 114 पर कुछ
इस तरह लिखे
हैं: 1) अब्बास बिन
अब्दुल मुत्तलिब 2) अल-फादी बिन अब्बास
3) अल-ज़ुहैर 3) खालिद बिन
सईद 4) अल-मिकदाद
5) सलमान-ए-फारसी 6) अबूज़र-ए-गफ्फारी 7) अम्मार-ए-यासिर 8) अल-बराआ और 9) उबै
बिन काब (मज़ीद
तफसीलात के लिए देखिए:
http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Sahabah_that_did_not_give_Bay%27ah_to_Abu_Bakr
)
यहाँ
शीया हज़रात का
अक़ीदा है कि
यह लोग हज़रत
अली के साथ
रहे, हज़रत अली
के बाद यह
थोडे से लोग
इमाम हसन की
बैअत में रहे
और उनके बाद
उनके छोटे भाई
इमाम हुसैन की
बैअत की और
इनमें से 72 करबला
में उनके साथ
रहे और शहीद
कर दिए गए।
करबला
का वाकेआ क्या
है?
रसूलअल्लाह (स.)
के इन्तेकाल के
50 साल
बाद, उम्मते मुस्लिमा (सहाबा
- ताबेईन) ने रसूलअल्लाह के
प्यारे नवासे इमाम
हुसैन को 3 दिन
का भूका-प्यासा
शहीद कर दिया
और शीयों पर
इल्ज़ाम लगाया कि
वे इमाम हुसैन
की शहादत के
ज़िम्मेदार हैं। जब कि
इमाम हुसैन के
चाहनेवाले (शीया यानि दोस्त,
चाहनेवाले) उनके साथ शहीद
हुए और आज
वह उन्हे याद
करके रोते हैं
और यह तमन्ना
करते हैं कि
अगर यह लोग
भी उनके साथ
करबला में होते
तो उन पर
अपनी जान कुरबान
कर देते। आशूरा
(10 मोहर्रम) को
ज़ालिम खलीफा यज़ीद
और उसकी बैअत
करनेवाले पूरे नाम निहाद
मुसलमानों ने ईद मनाई
और कहा कि
खलीफा-ए-वक्त
के सामने बगावत
करनेवाला बागी (नऊज़ुबिल्लाह) मारा
गया।
इस
वाकए में शियों
का क्या कुसूर
है? क्या यज़ीद
की फौज शिया
थी या फिर
यज़ीद खुद शिया
था? इमाम हुसैन
की शहादत से
पहले शिया कभी
भी गम नहीं
मनाते थे और
कभी भी यह
''ड्रामा'' नहीं करते
थे।
क्या
शीयों ने इमाम
हुसैन को शहीद
किया है?
जी
नहीं। यज़ीद की
फौज ने शहीद
किया। यज़ीद ने
इमाम हुसैन को
अपनी बैअत करने
का हुक्म दिया
और बैअत न
करने की सूरत
में उनपर सख्ती
करने का हुक्म
दिया। कुछ लोग
कहते हैं कि
कूफे के शीयों
ने आपको बुलवाया और
फिर धोका दे
दिया। कूफे में
शीया नहीं रहते
थे। कूफे के
अक्सर लोग हज़रत
अली की बैअत
से पहले हज़रत
उस्मान की बैअत
में थे और
खुलफा-ए-राशिदा
को तस्लीम करते
थे। शीया खिलाफते राशिदा
को तस्लीम नहीं
करते।
क्या
इमाम हुसैन की
याद मनाना बुरी
बात है?
अगर
इमाम हुसैन की
याद मनाना बुरी
बात है तो
फिर रसूलअल्लाह (स.)
क्यूँ इमाम हुसैन
की शहादत को
याद करके रोए?
(इस बारे में
मज़ीद मालूमात के
लिए देखिये http://www.youtube.com/watch?v=8Qd3UQMsHDs
अगर
अपने मेहबूब (प्यारे)
की याद में
रोना बुरी बात
है तो:
नबीअल्लाह हज़रत
याकूब क्यूँ अपने
बेटे नबी युसुफ
की याद में
रोए? (कुरआन करीम)
हज़रत
रसूलअल्लाह क्यूँ अपने चचा
हज़रत हमज़ा की
याद में रोए?
(तबकात इब्ने सआद)
हज़रत
फातेमा ज़हरा क्यूँ
अपने वालिद की
याद में रोईं?
(बुखारी शरीफ)
हज़रत
आयशा क्यूँ अपने
वालिद हज़रत अबूबकर
की याद में
रोईं? (सहीह तिरमीज़ी)
हज़रत
उमर क्यूँ अपने
दोस्त खालिद बिन
वलीद की याद
में रोए और
मरसिया पढ़ा? (अत्तरीक इलल
मदाएन, स. 366)
और
ओसामा बिन लादेन
के चाहने वाले
क्यूँ उसकी याद
में रोए? फोटो
देखने यहाँ क्लिक
करें:
अगर
किसी की याद
मनाना बुरी है
तो क्यूँ हज़रत
इब्राहीम और इस्माईल की
याद में करोड़ों जानवरों की
कुरबानीयाँ की जाती हैं,
उनका खून बहाया
जाता है? जबकि
हज़रत इस्माईल जिब्हा
भी नहीं हुए
थे! अल्लाह ने
उनकी कुरबानी कुबूल
की और लोगों
को हुक्म दिया
की उनकी याद
मनाई जाए। अल्लाह
अपने बन्दों की
कुरबानी को याद करने
का हुक्म देता
है। क्या इस्लाम
की राह में
इमाम हुसैन की
कुरबानी कुबूल नहीं हुई?
क्या उनकी कुरबानी को
याद करने से
अल्लाह नाराज़ होगा?
इमाम
हुसैन कौन हैं?
• हज़रत अली के
बेटे हैं।
• जन्नत के जावानों के सरदार हैं।
• इनकी माँ का नाम फातेमा ज़हरा है।
• इनकी माँ, रसूलअल्लाह की बेटी हैं और तमाम औरतों की सरदार हैं।
• इन्होने इस्लाम बचाया है।
• जन्नत के जावानों के सरदार हैं।
• इनकी माँ का नाम फातेमा ज़हरा है।
• इनकी माँ, रसूलअल्लाह की बेटी हैं और तमाम औरतों की सरदार हैं।
• इन्होने इस्लाम बचाया है।
यज़ीद
कौन था?
• मुआविया बिन अबु सुफियान का बेटा था।
• जहन्नमी है, यह फासिक और फाजिर था।
• इसकी दादी का नाम हिन्दा था।
• इसकी दादी जालिम थी।
• इसकी दादी नें रसूलअल्लाह के चचा हज़रत हमज़ा का कलेजा खाने की कोशिश की थी।
• इसने इस्लाम को नुकसान पहुँचाया है।
• मुआविया बिन अबु सुफियान का बेटा था।
• जहन्नमी है, यह फासिक और फाजिर था।
• इसकी दादी का नाम हिन्दा था।
• इसकी दादी जालिम थी।
• इसकी दादी नें रसूलअल्लाह के चचा हज़रत हमज़ा का कलेजा खाने की कोशिश की थी।
• इसने इस्लाम को नुकसान पहुँचाया है।
क्या
यज़ीद के मानने
वाले इस दुनिया
में हैं?
जी
हाँ। यज़ीद को
खलीफा मानने वाले
आज भी दुनिया
में हैं और
आज भी यह
लोग इमाम हुसैन
के चाहनेवालों पर
जुल्म करते हैं
और यज़ीद से
हमदर्दी करते हैं और
यज़ीद के लिए
दुआ करते हैं।
शीया
कहाँ-कहाँ है
और कौन इन
पर जुल्म कर
रहा है?
शीया
पूरी दुनिया में
हैं। हिन्दुस्तान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान,
ईराक, बहरैन, लेबनान,
सऊदी अरब, अरब
इमारात, कूवैत, यमन,
वगैरा वगैरा। इन
बिचारों का 'यज़ीद के
माननेवाले' हर रोज़ कल्ते
आम कर रहे
हैं। हर रोज़
30 से
40 शीयों
का कत्ल हो
रहा है।
इनका
कत्ल क्यूँ हो
रहा है?
इस
लिए कि कुछ
मुसलमान इनके खिलाफ नफरत
फैलाते हैं, इनके
खिलाफ मनघडत बातें
लोगों को बताते
हैं और इनको
कत्ल करने पर
अल्लाह से जन्नत
दिलाने का वादा
करते हैं।
क्या
शिया काफिर या
काफिर से बदतर
है?
क्यूँ?
कुछ लोगों का
कहना है कि
यह लोग सहाबा
को बुरा भला
कहते हैं इस
लिए काफिर हैं।
यह बात बिलकुल
झूठ है। अगर
कुछ देर के
लिए इसको सहीह
मान भी लिया
जाए तब भी
तबलीगी जमाअत के
आलिम मौलाना तारिक
जमील के मुताबिक सहाबी
को बुरा भला
कहने से मुसलमान काफिर
नहीं होता। अहले
हदीस फिरके के
मशहूर आलीम मौलाना
इस्हाक का कहना
भी यही है।
और मशहूर सुन्नी
आलिम डॉ. ताहिरुल कादरी
भी शीयों को
काफिर नहीं मानते।
शीयों
के अकीदे क्या
हैं?
1) अल्लाह एक
है। 2) हज़रत मोहम्मद (स.)
अल्लाह के आखरी
नबी हैं। 3) हज़रत
अली रसूलअल्लाह के
पहले जानशीन और
खलीफा हैं। 4) हज़रत
अली की आल
से 11 इमाम हैं
जिनकी पैरवी शीया
हज़रात करते है।
शीयों ने अपना
दीन रसूलेपाक से
और इन 12 इमामों
से लिया है।
इमाम हुसैन के
बाद के सभी
इमाम, इमामे हुसैन
का गम मनाते
थे और उनकी
याद में लोगों
को पानी पिलाते
थे और खाना
खिलाते थे।
नफ़रत
फैलाने वाले कौन
है?
यह
वह लोग हैं
जिनके यहाँ हर
कोई काफिर है।
जो इनके ''खयालों''
को नहीं मानता
वह काफिर हैं।
इनको ''तकफीरी'' कहा
जाता है। यह
सब को काफिर
होने के फतवे
देते रहते हैं।
इनके मुताबिक बरेलवी
मुस्लिम, शिया मुस्लिम, बोहरी
मुस्लिम, सूफी मुस्लिम यह
सब काफिर हैं।
नफरत
फैलाने वालों के
लिए नसीहत:
किसी
को बुरा-भला
कहने से आप
सहीह साबित नहीं
होते। अगर आप
रसूलअल्लाह के उम्मती हैं
तो काफिरों की
भी इज्ज़त कीजीए।
कुरआन ने साफ
लफ्जों में कहा
है कि ''आप
के लिए आपका
दीन और हमारे
लिए हमारा दीन''। अगर आपको
किसी की कोई
बात गले से
नहीं उतरती तो
मोहज्ज़ब
(Civilized) तरीके
से आप उसे
समझने की कोशिश
कर सकते हैं।
किसी पर कीचड
उछालने से आपके
ही कपड़े गंदे
होंगे। रसूलअल्लाह की
सुन्नत उनका हुस्ने
सुलूक है, उनके
अखलाक हैं। सिर्फ
उनके जैसे कपड़े
पहन लेने से
आप उनके सच्चे
उम्मती नहीं हो
सकते। एक दूसरे
की इज़्ज़त और
अहतेराम मुसलमान होने की निशानी
है। रसूलअल्लाह ने
काफिरों से भी हुस्ने
सुलूक किया है।
(याद करिए उस
बुढिया का वाकेआ
जो रसूलअल्लाह पर
कचरा फेंकती थी।)
जिस
मदरसे ने शीयों
के बारे में Sangli ( Maharashtra)
पर्चा बाँटा है
उसके लिए सलाह:
नाज़िम
साहब, हम आपसे
मुअद्दबाना गुज़ारिश करते हैं कि
आप अपने मदरसे
की खैर और
उसकी तरक्की के
लिए काम करें।
नफ़रत फ़ैलाना और
लोगों को उक्साना कानूनन
जुर्म है। कानून
से न खेलें।
अपने मदरसे के
बच्चों को अच्छा
इन्सान बनने की
तरबीयत दीजीए ताकि
वे अपने मुल्क
के लिए और
इन्सानीयत के लिए अच्छे
काम कर सकें।
प्यार, मोहब्बत और
भाईचारा खुसूसन दूसरों की
इज्ज़त करना और
दूसरों को समझना
सिखाइये, तो आपकी महरबानी होगी।
अल्लाह
आपको और हमको
हिदायत दे। आमीन।
नोट:
यह जवाब एक
तालिब-ए-इल्म
की तरफ से
पेश किया जा
रहा है। अगर
किसी भी मौज़ू
पर मज़ीद तफ़सीलात चाहते
हैं तो बराए
महेरबानी शीया ओलमा से
राबता करें। आप
अपने इलाके की
शीया मस्जिद में
जाकर शीयों के
बारे सहीह मालूमात उनसे
हासिल कर सकते
है।
अगर
इस परचे के
बारे में कोई
भी सवालात हो
या आप शीयों
के बारे में
मज़ीद मालूमात हासिल
करना चाहते हों
तो बराए महेरबानी इस
ईमेल पर अपना
कलाम लिखें।