यज़ीद के विरूद्ध हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का क़याम व उसके उद्देश्य


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सन् 60 हिजरी क़मरी में मुआविया के मरने के बाद उसका बेटा यज़ीद शाम के सिहासन पर बैठा और उसने स्वयं को पैग़म्बर का उत्तराधिकारी घोषित किया। सत्ता पाने के बाद उसने इस्लामी मान्याताओं को बदलने और क़ुरआन के आदेशों का विरोध करने के साथ साथ मानवता विरोधी कार्य करने भी शुरू कर दिये। इमाम हुसैन ने जब यज़ीद को इस्लाम विरोधी कार्य करते देखा तो सन् (61) हिजरी में यज़ीद के विरूद्ध क़ियाम (क़ियाम अर्थात किसी के विरूद्ध संघर्ष करना) किया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को आपने प्रवचनो में इस प्रकार स्पष्ट किया कि----
1—             जब शासकीय यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीना छोड़ने पर मजबूर हो गये तो उन्होने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को इस प्रकार स्पष्ट किया। “ मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमयी जीवन यापन करने या उपद्रव फैलाने के लिए क़ियाम नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम) की उम्मत (इस्लामी समाज) में सुधार हेतु जा रहा हूँ तथा मेरा निश्चय मनुष्यों को अच्छाईयों की और बुलाना व बुराईयों से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर व अपने पिता इमाम अली की शैली पर चलूँगा। ”
2—             एक दूसरे अवसर पर कहा कि “ ऐ अल्लाह तू जानता है कि हम ने जो कुछ किया वह शासकीय शत्रुता या सांसारिक मोहमाया के कारण नहीं किया। बल्कि हमारा उद्देश्य यह है कि तेरे धर्म की निशानियों को यथा स्थान पर पहुँचाए तथा तेरी प्रजा के मध्य सुधार करें ताकि तेरी प्रजा अत्याचारियों से सुरक्षित रह कर तेरे धर्म के   सुन्नत व वाजिब आदेशों का पालन कर सके। ”
3—             जब आप की भेंट हुर पुत्र यज़ीदे रिहायी की सेना से हुई तो आपने कहा कि    “ ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को   हक़दार के पास देखना चाहते हो, तो यह कार्य अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए बहुत अच्छा है। हम अहलेबैत ख़िलाफ़त पद के, अन्य अत्याचारी व व्याभीचारी दावेदारों की अपेक्षा सबसे अधिक हक़दार हैं। ”
4—             एक अन्य स्थान पर कहा कि हम अहलेबैत शासन के उन लोगों से अधिक हक़दार हैं जो शासन कर रहे है।  
         इन चार कथनों में जिन उद्देश्यों की और संकेत किया गया है वह इस प्रकार हैं-------
1-      इस्लामी समाज में सुधार।
2-      जनता को अच्छे कार्य करने का उपदेश।
3-      जनता को बुरे कार्यो से मना करना।
4-      आदरनीय पैगम्बर व आदरनीय अली की कार्य शैली को किर्यान्वित करना।
5-      समाज को शांति व सुरक्षा प्रदान करना।
6-      अल्लाह के आदेशो के पालन हेतु भूमिका तैयार करना।
नोट--यह समस्त उद्देश्य उसी समय प्राप्त हो सकते हैं जब शासन की बाग़ डोर स्वंय इमाम के हाथो में हो जो कि इसके वास्तविक अधिकारी हैं। अतः इमाम ने स्वंय कहा भी है कि शासन हम अहलेबैत का अधिकार है न कि शासन कर रहे उन लोगों का जो अत्याचारी व व्याभीचारी हैं।  
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़ियाम के परिणाम
1-      बनी उमैया के वह धार्मिक षड़यन्त्र छिन्न भिन्न हो गये जिनके आधार पर उन्होंने अपनी सत्ता को शक्ति प्रदान की थी।
2-      बनी उमैया के उन शासकों को लज्जित होना पडा जो सदैव इस बात के लिए तत्पर रहते थे कि इस्लाम से पूर्व के मूर्खता पूर्ण प्रबन्धो को क्रियान्वित किया जाये।
3-      कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन की शहादत से मुसलमानों के दिलों में यह चेतना जाग्रत हुई कि हमने इमाम हुसैन की सहायता न करके बहुत बड़ा पाप किया है।
इस चेतना से दो चीज़े उभर कर सामने आयीं, एक तो यह कि इमाम की सहायता न करके जो गुनाह (पाप) किया उसका परायश्चित होना चाहिए। दूसरे यह कि जो लोग इमाम की सहायता में बाधक बने थे, उनकी ओर से लोगों के दिलो में घृणा व द्वेष उत्पन्न हो गया।
इस गुनाह के अनुभव की आग लोगों के दिलों में निरन्तर भड़कती चली गयी। तथा बनी उमैया से बदला लेने व अत्याचारी शासन को उखाड़ फेकने की भावना प्रबल होती गयी।
अतः तव्वाबीन   नामक समूह ने अपने इसी गुनाह के परायश्चित के लिए क़ियाम किया ताकि इमाम की हत्या का बदला ले सकें।
4-      इमाम हुसैन के क़ियाम ने लोगों के अन्दर अत्याचार का विरोध करने के लिए
प्राण फूँक दिये। इस प्रकार इमाम के क़ियाम व कर्बला के खून ने हर उस बाँध को तोड़ डाला जो इन्क़लाब (क्रान्ति) के मार्ग में बाधक था।
5-      इमाम के क़ियाम ने जनता को यह शिक्षा दी कि कभी भी न किसी के सम्मुख झुको न अपने व्यक्तित्व को बेंचो । शैतानी ताकतों से लड़ो व इस्लामी सिद्धान्तों को क्रियान्वित करने के लिए प्रत्येक चीज़ को नयौछावर कर दो।
6-      समाज के अन्दर यह नया दृष्टिकोण पैदा हुआ कि अपमान जनक जीवन से सम्मान जनक मृत्यु श्रेष्ठ है।
 
 
 

यज़ीद के विरुद्ध हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का क़याम व उसके उद्देश्य: एक विस्तृत अध्ययन


#### पृष्ठभूमि
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का क़याम इस्लाम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। 680 ईस्वी (61 हिजरी) में यज़ीद इब्न मुआविया के शासन ने इस्लामिक दुनिया में अत्याचार और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। यज़ीद के शासन ने इस्लामिक सिद्धांतों का उल्लंघन किया और इस्लामी न्याय और नैतिकता को विकृत किया। ऐसी स्थिति में, हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने सत्य और न्याय की रक्षा के लिए खड़े होने का निर्णय लिया।

#### कर्बला का सफर
मदीना से कर्बला तक का सफर हज़रत इमाम हुसैन के लिए एक आध्यात्मिक और नैतिक संघर्ष था। उन्होंने मदीना छोड़कर कूफा की ओर जाने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्हें वहां के लोगों से समर्थन की उम्मीद थी। हालांकि, उनके रास्ते में यज़ीद की सेना ने उन्हें रोक दिया और वे कर्बला के मैदान में घिर गए।

#### कर्बला की घटना और शहादत
कर्बला की घटना 10 मुहर्रम 61 हिजरी को हुई। हज़रत इमाम हुसैन और उनके वफादार साथियों ने यज़ीद की बड़ी सेना के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में, हज़रत इमाम हुसैन, उनके परिवार के सदस्य और अन्य साथी शहीद हो गए। यह संघर्ष न केवल एक सैन्य संघर्ष था, बल्कि यह इस्लामी सिद्धांतों और न्याय की रक्षा के लिए एक महान बलिदान था।

#### क़याम के उद्देश्य
1. **न्याय और सत्य की रक्षा**: हज़रत इमाम हुसैन का उद्देश्य था कि वे यज़ीद के अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होकर न्याय और सत्य की रक्षा करें। उन्होंने अपने क़याम के माध्यम से यह संदेश दिया कि किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ खड़ा होना आवश्यक है।

2. **इस्लामी सिद्धांतों की पुनर्स्थापना**: यज़ीद के शासन में इस्लामी सिद्धांतों का उल्लंघन हो रहा था। हज़रत इमाम हुसैन ने अपने क़याम के माध्यम से इस्लाम के असली मूल्यों और सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया।

3. **मानवता के मूल्यों की प्रेरणा**: हज़रत इमाम हुसैन का क़याम मानवता, साहस और बलिदान के मूल्यों को जीवंत करता है। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि सत्य और न्याय की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर खड़ा रहना आवश्यक है, चाहे इसके लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।

#### कर्बला का प्रभाव और महत्व
कर्बला की घटना ने इस्लामिक दुनिया में एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है। यह घटना न केवल इस्लामी मान्यताओं की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह न्याय, सत्य और मानवता के मूल्यों की पुनर्स्थापना का भी प्रतीक है। हर वर्ष मुहर्रम के महीने में, मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन की याद में मातम मनाते हैं और उनके बलिदान को याद करते हैं। यह परंपरा हमें यह याद दिलाती है कि अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना और सत्य के लिए संघर्ष करना हमारी जिम्मेदारी है।

#### निष्कर्ष
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का क़याम एक महान प्रेरणा स्रोत है। उनका बलिदान इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो हमें सत्य, न्याय और मानवता के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है। करबला की घटना और हज़रत इमाम हुसैन का बलिदान हमें यह सिखाता है कि सत्य और न्याय की रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। यह क़याम और बलिदान हमें अत्याचार और अनैतिकता के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है, चाहे इसके लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े। हज़रत इमाम हुसैन का क़याम और उनका बलिदान आज भी हम सभी के लिए एक महान प्रेरणा है और हमें इस्लाम के असली मूल्यों की रक्षा के लिए प्रेरित करता है।